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सावन का महीना आ गया है

Mausim
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गाँव का मज़ा तो गाँव में ही आ सकता है। यदि किसी भी तरीक़े से इसे शहरों में बसाया जाए, वह उतना आनंद नही दे सकता।
सामने चल रही मोटरसाइकिल जब पीछे छींटे उड़ाता हमारी सफ़ेद कमीज़ पर दाग़ छोड़ जाता है।
फ़र्राटे भरती कार कब क़रीब से गुज़र कर हमें पूरा कीचड़ से सरोबार कर देती है।
पता चल जाता है सावन आ गया है।
आधुनिकरण, शहरीकरण के इस युग में रफ़्तार से चलने वाले हमारे ये हमसफ़र एक तोहफ़ा दे जाते है।
शहरों में सावन के इस मौसम का आनंद लेना हो तो इन तोहफ़ों को हमें भी स्वीकार करते हुए चलना पड़ सकता हैं।
जरा संभल कर चले। इस राह पर आने वाले गड्ढे भी इस सावन के महीने अपने आप को लबालब भर कर आंनद व्यक्त करते है। नज़र ही नही आते।
जी हाँ, सावन का महीना आ गया है….।

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